यदि सिर्फ ऐतिहासिक, आर्थिक तथा वैज्ञानिक पक्ष भी देखा जाए तो ‘गाय’ भारत ही नहीं दुनिया के लिए बहुत उपयोगी जीव सिद्ध होती है।
आज मै ‘गाय’ के इतिहास पर थोडा प्रकाश डालना चाहता हूँ तथा ‘गाय’ के विषय में कुछ तथ्यों को यहाँ प्रस्तुत करना चाहता हूँ |
‘गाय’ – यह एक ऐसा शब्द है जिससे भारत के कई लोगों की आस्था जुडी हुई है | सदियों से इस भूमि पर गाय का सम्मान तथा रक्षा होते आये हैं | यह इस हद तक भारत के लोगों के मन में बसी हुई है की मुगलों तक को कई बार अपना राज्य बचाने के लिए ‘गौ-हत्या’ प्रतिबंधित करनी पड़ी थी | यही नहीं अंग्रेजों के समय भी प्रथम क्रांति गाय के प्रश्न पर ही हुई थी | पर बाद में अंग्रेजों ने इसी गाय को इस कदर अपने पाठ्यक्रम में बदनाम किया की आज कई भारतीय ‘गाय’ की हत्या तथा इसे भोजन के रूप में ग्रहण करने की वकालत करते हैं | कुछ महीनो पहले ही केरला में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने सरेआम सड़क पर गाय को काटकर तथा उसका मॉस पकाकर लोगों में बांटा था | इसके अगले ही दिन आई.आई.टी. मद्रास में ५० छात्रों ने गाय का मॉस खाने की पार्टी आयोजित करी , जिसमे सभी को गौ मॉस परोसा गया | [i] यह इस बात के विरोध में था के भारत सरकार ने गाय को काटने और बेचने पर रोक क्यों लगाईं | कई वामपंथी लोगों का मानना है के यह उनके खाने के मामले में दखल देना है |
अब समझ नहीं आता के जिस देश में कई तरह की जलवायु तथा लाखो तरह के पकवान एवं सब्जियां हर राज्य में होती हों वहां सिर्फ गाय को खाकर ही भूख मिटाने की जिद कहाँ तक जायज़ है, और वो भी तब जब देश की आधे से ज्यादा आबादी गाय को ‘माँ’ और इश्वर का दर्जा देती हो | यह सब एक विशेष प्रकार की नफरत की राजनीति के लिए किया जा रहा है जिसमे वामपंथी हर वो काम करने के लिए खड़े हो जाते हैं जिसमे हिन्दू धर्म का अपमान होता हो , क्योंकि वामपंथी विचारधारा के मूल में ही यह है के ‘धर्म एक अफीम की तरह है’ तथा धर्म को समाप्त कर देना चाहिए | हालाँकि कार्ल मार्क्स ने वहां रिलिजन शब्द का प्रयोग किया था जो असल में धर्म नहीं है मगर हिन्दुस्तान के वामपंथी धर्म और रिलिजन दोनों को एक ही समझ बैठे , शायद यह उनकी राजनीति चमकाने के लिए उन्हे उचित लगा होगा | ‘गाय’ जो हर थोड़े दिन में कहीं ना कहीं से मीडिया के निशाने पर आ ही जाती है, आज मै इसके इतिहास पर थोडा प्रकाश डालना चाहता हूँ तथा ‘गाय’ के विषय में कुछ तथ्यों को यहाँ प्रस्तुत करना चाहता हूँ |
अंग्रेजों के समय में रोबर्ट क्लाइव ने सब यह पता लगवाया के भारत की कृषि का मूल क्या है तो पता चला के कृषि की सफलता का मूल ‘गाय’ है |
जैसा की हम सभी जानते हैं के भारत १७वी शताब्दी तक दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक था तथा भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था | यही नहीं भारत का निर्यात भी दुनिया में अत्यधिक मात्रा में होता था | उस समय भारत मसाले, अनाज, कपडे, लकड़ी का सामान इत्यादि कई वस्तुएं दुनिया भर के बाज़ार में बेचता था | अर्थशास्त्र के सभी विद्यार्थी जानते हैं के प्राइमरी सेक्टर से वस्तुए बनती है , फिर द्वितीय चरण में बिकती है तथा तीसरे चरण में उनकी सेवाए प्रदान की जाती है | अतः सबसे आवश्यक होता है प्राइमरी या प्राथमिक क्षेत्र जहाँ से कच्चा माल तैयार होता है | भारत की अधिकतर जनता उस समय कृषि करती थी जिससे सबसे अधिक अनाज, मसाले तथा कपास इत्यादि बनता था तथा इसी कारण लोग भी भूखें नहीं मरते थे एवं भारत का निर्यात भी इतना अधिक था | अंग्रेजों के समय में रोबर्ट क्लाइव ने सब यह पता लगवाया के भारत की कृषि का मूल क्या है तो पता चला के कृषि की सफलता का मूल ‘गाय’ है | गाय के गोबर से ‘खाद’ तथा इसके गौ-मूत्र से ‘कीटनाशक’ बन जाया करता था तथा बैल के द्वारा हल जोतकर खेती कर ली जाती थी | यही नहीं किसान के बच्चों तथा परिवार को गाय का दूध तथा इससे बने दही, लस्सी , छाछ , मक्खन इत्यादि खाने को मिलते थे जिसके कारण कोई कुपोषित नहीं होता था और किसी को भूखा नहीं रहना पड़ता था | यही नहीं फसल काटने पर नीचे का बचा हुआ हिस्सा गाय का चारा बन जाता था तथा ऊपर का अनाज या फसल किसान अपने प्रयोग में लेकर बाकी बेच दिया करता था | इस तरह से भारत के लाखो गाँवों से प्राथमिक क्षेत्र से कच्चा माल तैयार हो जाता था फिर उससे सामान बनाकर जैसे (मसाले, कपडे इत्यादि ) दुनिया भर में बेचा जाता था | इस तरह भारत ना सिर्फ आत्मनिर्भर था बल्कि सोने की चिड़िया भी बना |
रोबर्ट क्लाइव ने १७६० में भारत की कृषि व्यवस्था और भारत के व्यापार को खत्म करने के लिए कलकत्ता में पहले गौ-कत्लखाना खुलवाया| यह इतना बड़ा था के इसमें एक दिन में ३०,००० गाय काटी जाती थी | [ii] इसके बाद भारत की कृषि व्यवस्था और किसानो के हालात बद्दतर होते चले गए | गायों को काटने के साथ साथ अंग्रेजों ने किसानो पर ५० से ९० प्रतिशत तक के कर भी थोप दिए जिससे स्थिति और बिगडती चली गयी | [iii] यही नहीं अंग्रेजो ने बाद में खाद के नाम पर अपनी इंडस्ट्री का बचा हुआ यूरिया और फॉस्फेट भारत में बेचना शुरू कर दिया तथा बहुत मुनाफा कमाया | अब किसानो को खाद, कीटनाशक के पैसे देने पड़ गए तथा बिना गौ के बंगाल में खेती बहुत मुश्किल हो गयी जिसके कारण बाद में बंगाल में अकाल भी पड़े जिसमे अंग्रेजो ने जो थोडा बहुत अनाज उत्पन्न हुआ था उस अनाज को अपनी सेना को दे दिया था और किसानो को मरने छोड़ दिया था | यहाँ तक के विश्वयुद्ध के समय जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल से पत्रकार ने अनाज की कमी के कारण किसानो के भूखे मरने की बात कही तो उन्होंने जवाब दिया के ‘यदि भारत के लोग भूखे मर रहे हैं तो गांधी अब तक क्यों नहीं मरा’ | [iv] इस तरह अंग्रेजों ने अपने देश के व्यापार को आगे बढाने के लिए भारत की कृषि व्यवस्था और उस पर टिके समस्त व्यापार को समाप्त कर डाला जिसके कारण आज तक कई किसान आत्महत्या कर रहे हैं तथा अभाव में जीवन जी रहे हैं | सिर्फ ‘गाय’ के कारण भारत की कृषि और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था इतनी समृद्ध थी तथा गाँव गाँव में दूध दही की नदियाँ बहने के कारण कोई कुपोषण तथा भूख से नहीं मरता था | यही नहीं भगवान् कृष्ण की गाय चराते थे और उसके दूध का मक्खन बड़े चाव से खाते थे | इस तरह गौ तथा गौ वंश पूरे भारत के समाज में रचा बसा था इसीलिए भारत के समाज में गाय को माँ का दर्जा दिया गया था क्योंकि माँ कभी बच्चो को भूखा नहीं मरने देती और इसी कारण कई साम्राज्यों में गाय अवध्य थी जैसे :
बुद्ध, जैन तथा सिक्ख मतों की पुस्तकों में गाय की हत्या पर निषेध लगाया गया है |
दक्षिण भारत के चोला राजा मनु नीतिचोला ने अपने पुत्र को मृत्युदंड सुनाया था क्योंकि एक गाय ने उनके राज्य में न्याय का घंटा बजाया था, जिससे पता चला था के उसका बछड़ा राजकुमार के रथ के नीचे कुचल कर मर गया था |
सिख साम्राज्य के समय राजा रणजीत सिंह ने अपने यहाँ गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगा दिया था |
मराठा साम्राज्य के समय भी गौ हत्या पर इनके साम्राज्य में पूर्णतः प्रतिबन्ध था तथा गाय काटने वालों को कठोर सजा का नियम था जो पेशवा के समय तक भी कायम था |
आज भी भारत में कई गौशालाएं हैं जहाँ जैविक कृषि गाय के गोबर तथा गो मूत्र से की जा रही है जिससे लोगों को जहरीले कीटनाशक डले हुए अनाज से मुक्ति मिल रही है
यही नहीं आज़ादी का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम भी मंगल पांडे द्वारा गाय की चर्बी से बने कारतूस ना चलाने को लेकर ही किया गया था | तथा महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय, मदन मोहन मालवीय आदि भी आजादी के आन्दोलन में लोगों से यही कहते थे के स्वतंत्रता मिलने पर सबसे पहला कार्य गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगाने का करेंगे |[x]मगर अफ़सोस आज़ादी के बाद गौ कतलखानो की संख्या ३६००० तक पहुँच गयी | यही नहीं भारत के लोग खुद अंग्रेजी शिक्षा पढ़कर तथा वामपंथ के प्रभाव में आकर गाय काटने और गाय खाने की बात करने लगे |
इन सब विशेषताओं के साथ साथ प्राचीन आयुर्वेद में गाय के पंचगव्य तथा गौमूत्र से कई बीमारियाँ ठीक करने का वर्णन है | अतः देसी गाय के गौमूत्र तथा पंचगव्य से आज पथमेड़ा , जड़खोर ,गौ विज्ञानं अनुसंधान केंद्र नागपूर ,पतंजलि , आर्ट ऑफ़ लिविंग तथा कई गौशालाएं एवं आयुर्वेद और सिद्धा के आचार्य कई तरह की दवाये बना रहे हैं तथा इससे बहुत से बड़े एवं असाध्य रोगों का इलाज भी इन्होने कर के दिखाया है | पथमेड़ा ,महर्षि वाङ्ग्भट गौशाला वालाजाबाद , रामदेव बाबा तथा गायत्री परिवार के गाय के कई उत्पादों एवं औषधियों पर बहुत से शोध भी हुए हैं जिनके आधार पर वैज्ञानिक तौर पर यह कहा जा सकता है के गौ मूत्र तथा पंचगव्य एक प्रमाणिक औषधि है | इसके अलावा गाय के घी से किये गए अग्निहोत्र यज्ञ से वायु से जहरीली गैस हटाकर उसे शुद्ध करने के प्रयोग तो जापान के हिरोशिमा, नागासाकी तथा भोपाल में गैस त्रासदी के बाद किये ही जा चुके हैं | यज्ञ का अपना एक पूरा विज्ञान हिन्दू धर्म के कई शास्त्रों में भरा पड़ा है |